
कहते हैं कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। क्या आप जानते हैं इस अद्भुत ज्योतिर्लिंग के उद्भव की कहानी? अगर नहीं तो निराश मत होइए यह ब्लॉग आप ही के लिए है।
तो बिना देर किए चलते हैं अपनी कहानी की ओर-
एक बार की बात है श्री गणेश और भगवान कार्तिकेय मै बहस हो रही थी कि कौन बड़ा है? दरअसल बात यूँ थी कि जो बड़ा है उसका विवाह पहला होगा। वाद विवाद करते करते वे दोनों माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ के समक्ष पहुंचे दोनों की बातें सुनकर भगवान शिव ने कहा कि तुम दोनों में कौन बड़ा है इस बात का निर्णय एक शर्त से होगा की जो भी इस धरती की सबसे पहले परिक्रमा करके कैलाश लौटेगा वही बड़ा होगा और उसी का विवाह सबसे पहले होगा। इस शर्त सुनकर कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर बैठकर धरती की परिक्रमा करने चल दिए। वहीं दूसरी और भगवान गणेश जिनका वाहन था मूषक। अब मूषक चले तो कितना चले इसी बीच गणेश जी को एक युक्ति सूूझी उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा लगाना शुरू कर दिया। उन्होंने यह क्रम सात बार तक किया। इस घटना से भगवान शिव अत्यंत ही प्रसन्न हुए और गणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की दोनों पुत्रियों रिद्धि और सिद्धि से करा दिया इसके साथ-साथ भगवान शिव ने गणेश को बुद्धि के देवता के रूप में पूजे जाने का वरदान भी दिया।

जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस कैलाश को लौटे तो उन्हें यह देखकर अत्यंत ही क्रोध आया। वह रुष्ट होकर क्रौंच पर्वत पर चले गए।

अपने पुत्र को मनाने के लिए माता पार्वती ने सर्वप्रथम नारद मुनि को भेजा लेेकिन नारद मुनि का प्रभाव न चल सका। बाद में भगवान शिव और माता पार्वती क्रौंच पर्वत पर एक लिंग के रूप में प्रकट हुए उन्होंने कार्त्तिकेय को पुनः कैलाश पर्वत पर आने के लिए मना लिया। तभी से इस ज्योतिर्लिंग को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की ज्योतियाँ मौजूद है ।यहाँ मल्लिका माता पार्वती को और अर्जुन भगवान शिव को कहा गया है। यह ज्योतिर्लिंग शैल्य पर्वत पर आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे पर स्थित है। कहते हैं कि जितना फल अश्वमेध यज्ञ करने से मिलता है उतना ही फल इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और अभिषेक करने पर मिलता है।
प्रमुख घटनाएं/महत्वपूर्ण बिन्दु
- संपूर्ण मंदिर साउथ इंडियन स्टाइल में बना हुआ है। इस मंदिर का परिसर बहुत ही बड़ा है जो कि लगभग 2 हेक्टेयर भूमि पर फैला हुआ है।
- कहते हैं कि यह मंदिर लगभग 2000 साल पहले बनवाया गया था। मंदिर के गर्भ गृह में 8 अंगुल के बराबर शिवलिंग के दर्शन होते हैं। पल्लव,चालुक्य,काकतीय और रेड्डी राजाओं ने मंदिर को बनवाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
- 14वी शताब्दी में प्रलयम रेड्डी ने पातालगंगा से लेकर मुख्य मंदिर तक सीढ़ियां बनवाई थी वही विजयनगर साम्राज्य के महाराज हरिहर ने गोपुरम और मुख्य मंडप बनवाया था।
- 15वी शताब्दी में राजा कृष्ण देव राय ने राज गोपुरम और सुंदर मंडपम मंदिर में बनवाये।
- 1667 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मंदिर में गोपुरम निर्माण का कार्य कराया जिसको हम शिवाजी गोपुरम के नाम से भी जानते हैं ।इसके साथ साथ उन्होंने मंदिर के पास यात्रियों के विश्राम के लिए धर्मशाला भी बनवायी।
- मंदिर में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के अलावा सहस्त्र लिंगेश्वर, अर्धनारीश्वर ,वीर मद्महेश्वर और ब्रह्मा मंदिर बने हुए हैं मंदिर का पूरा शिखर सोने से बना हुआ है।
- मंदिर के पट 5:30 बजे से अपने भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं जो दोपहर 1:00 बजे तक खुले रहते हैं। शाम को पट 6:00 बजे से 10:00 बजे तक खुले रहते हैं।
- मंदिर से ही कुछ ही दूरी पर मां सती का मंदिर है जिसे जगदंबा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
- श्रीशैलम पर्वत पर मां सती की गर्दन गिरी थी जिस कारण वहां एक शक्ति पीठ का निर्माण हुआ। मां सती के कुल 51 शक्ति पीठ मौजूद है। यहाँ देवी को ब्रह्म रंभा के रूप में पूजा जाता है।10.शिवलिंग का अभिषेक करते समय महिलाओ के लिए साडी और पुरुषो के लिए धोती पहनना अनिवार्य हैं।
तो यह थी कहानी श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की जिनके दर्शन मात्र से सारी मनोकामनाएं और इच्छाएं पूरी हो जाती है।
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